प्रसंग : भारतीय प्रतिस्पर्धा आयोग (CCI) ने सर्वोच्च न्यायालय में कहा कि कोयला खदान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973, प्रतिस्पर्धा कानूनों से कोल इंडिया लिमिटेड (CIL) की रक्षा नहीं करता है।
कोयला खान (राष्ट्रीयकरण) अधिनियम, 1973
- यह संसद द्वारा अनुसूची में निर्दिष्ट कोयला खानों के सम्बन्ध में मालिकों के अधिकार और हित के अधिग्रहण और हस्तांतरण के लिए अधिनियमित किया गया था।
- अधिनियम की अनुसूची में देश के विभिन्न भागों में स्थित लगभग 711 कोयला खानों की सूची है।
उद्देश्य
- इसका उद्देश्य देश की बढ़ती आवश्यकताओं के अनुरूप कोयला संसाधनों के तर्कसंगत, समन्वित और वैज्ञानिक विकास और उपयोग को सुनिश्चित करना है।
प्रावधान
- अधिनियम के तहत, कोयला खनन विशेष रूप से सार्वजनिक क्षेत्र के लिए आरक्षित है।
- 1976 में अधिनियम में एक संशोधन द्वारा दो अपवाद पेश किए गए–
- लोहे और इस्पात के उत्पादन में लगी निजी कम्पनियों द्वारा कैप्टिव खनन
- आर्थिक विकास के लिए असंवेदी और रेल परिवहन की आवश्यकता नहीं रखने वाले अलग–थलग छोटे पॉकेटों में निजी पार्टियों को कोयला खनन के लिए उप–पट्टा
- 1993 में अधिनियम में एक संशोधन द्वारा लोहे और इस्पात के उत्पादन में लगी निजी कम्पनियों द्वारा कैप्टिव खनन के मौजूदा प्रावधानों के अलावे बिजली उत्पादन, खदान से प्राप्त कोयले की धुलाई के लिए या सरकार द्वारा समय–समय पर अधिसूचित किए जाने वाले अन्य अंतिम उपयोगों में कैप्टिव खनन में निजी क्षेत्र की भागीदारी की अनुमति दी गई।
- एक्ट के तहत, कैप्टिव उपयोग के लिए कोयला खदानों का आवंटन कोयला मंत्रालय के सचिव की अध्यक्षता वाली एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति की सिफारिश पर आधारित था।
- एक सरकारी अधिसूचना द्वारा सीमेंट के उत्पादन के लिए भी कोयले के कैप्टिव खनन की अनुमति दी गई।
कैप्टिव खदानें
- कैप्टिव खदानें वे खदानें होती हैं जिनका स्वामित्व कम्पनियों के पास होता है।
- इन खानों से उत्पादित कोयला या खनिज खानों की मालिक कम्पनी के अनन्य उपयोग के लिए है।
- इसमें उत्पादक कम्पनी कोयला या खनिज बाहर नहीं बेच सकती है।